जोहार! आदिवासी कभी नहीं हारे, चाहे मिथक हो, इतिहास हो या कि वर्तमान. हुलगुलान जिंदाबाद!!वंदना टेटे
झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा (झारखंड) द्वारा गोजरी अदब (जम्मू) के सहयोग से आयोजित
...राज्य सत्ता के दमन और कॉरपोरेट लूट के खिलाफ.घोषणा-पत्र देखें >
जोहार! देश के आदिवासी/देशज समुदाय कभी नहीं हारे, चाहे मिथक हो, इतिहास हो या कि वर्तमान. हमने घुटने कभी नहीं टेके. चाहे मिथक हो, इतिहास हो या कि वर्तमान. हुलगुलान जिंदाबाद!!
देशज और आदिवासी समुदायों का संगठन अखड़ा कैसे काम करता है और उसका इतिहास क्या है. विस्तार से जानिए और अखड़ा से जुड़िए्. [...]
10 वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही अखड़ा' पत्रिका अब ISSN नं. के साथ. 12 आदिवासी एवं देशज भाषाओं में निकलने वाली देश की एकमात्र पत्रिका. [...]
वेब पर आदिवासी एवं देशज भाषा, साहित्य और उसके लेखकों के बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए सबसे प्रामाणिक स्रोत. [...]
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हमारा समाज, इतिहास और साहित्य जीवन के हर क्षेत्र में स्त्रियों का संक्षेपण करता है। विशेषकर, हम आदिवासी स्त्रियों का। हमारा लेखन ऐसे संक्षेपण के खिलाफ है।
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उनके मार्क्सवाद, गांधीवाद, लोहियावाद के लिए हम लड़ते हैं, लड़ रहे हैं, लेकिन क्या वे हमारे आदिवासी दर्शन की बात भी करते हैं? दुनिया के आदिवासी साहित्य ने इसका जवाब दिया है. अब लोग भारतीय आदिवासी साहित्य से सुनना चाहते हैं. आदिवासी लेखकों क्या तुम तैयार हो?
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आदिवासी भाषा में लिखित आदिवासी साहित्य पर सबसे ज्यादा काम करने की जरुरत है, यह अब भी अपने मूल रूप में है. यहीं पर आदिवासी समाज की सोच, चिंतन और वैचारिकी की ठोस अभिव्यक्ति मिलती है. इसका ज्यादा-से-ज्यादा हिंदी एवं हिंदीतर भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए.
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आदिवासी समाज की तरह स्वयं आदिवासी साहित्य भी अनगिनत चुनौतियों से जूझ रहा है. आदिवासी साहित्य पर आ रही किताबें और शोध भ्रमों का निर्माण और दोहराव ही अधिक कर रहे हैं. इसलिए आदिवासी साहित्य के बारे में सही समझ का निर्माण करना बहुत जरूरी है.
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